मंगलवार, नवंबर 01, 2011

दो ताज़ा हिन्दी कविताएं

*पानीदार पानी*
 
मेरी प्यास के लिए
पानी नहीँ आया
पानी लाया गया
अपने पानी के लिए !
...
पानी के लिए
लोग दौड़े
पानी के लिए ही
अड़े-भिड़े
लड़े-मरे
कहीं पानी देखा गया
कहीँ देख लेने की बात हुई
कहीँ पानी बचाया गया
कहीँ कही उतर भी गया !

पानीदार चरित्रों की
कहानियां लिखी गईं
इतिहास रचा गया
पानीदारों का
हम तरसते रहे
प्यास भर पानी को !

पानी तो
हम भी बचाते रहे
बचा नहीँ मगर कभी भी
हमारा पानी
कभी भी
पानी की संज्ञा में
आंका ही नहीं गया ।

अब वे
लाए हैँ समाचार
दूर देश से ;
अगला युद्ध
पानी के लिए होगा
इस लिए पानी बचाओ !

मां कहती है
मैंने तो
घर के भीतर भी
भयानक युद्ध देखे हैँ
पानी के लिए
अब तो
उतरने लगा है
तांबे के गहनों से
सोने का पानी
जो कभी चढ़ाया गया था
घर के पानी के लिए !
 
 
*अपने घर भी हो दिवाली*
 
फूटे पटाखा
छूटे फुलझड़ी
आतिश जाए आकाश मेँ
हम को क्या पड़ी
... दो जून पकें रोटियां
नत्थू-बिजिया सोएं ना भूखे
हंस लें दे कर ताली
अपने घर भी हो दिवाली !

बैंक-साहूकारों का उतरे कर्ज
रोशन जगमग घर मेँ
पसरे ना कोई मर्ज
कांडवती ना हों सरकारें
समझेँ अपना फर्ज
अपने नेता जी की
नीयत ना हो काली
अपने घर भी हो दिवाली !

भीतर देश के
ना हों आतंकी
सीमा पर हो भाईचारा
घर का फौजी भैया
घर मनाए ये दिवाली
अम्मा संग बैठ कर वो भी
पीए चाय गुड़वाली
अपने घर भी हो दिवाली !

घर से निकला
घर को आए
तवे उतरी रोटी खाए
भंवरी-कंवरी हो सुरक्षित
सड़क किसी को न खाए
नोट चले सब असली
एक न निकले नकली
अपने घर भी हो दिवाली !

हक किसी का
छीने ना कोई
राजा पूछे
क्यों जनता रोई
बाजारों मेँ हो
सच्चा सौदा सेवा का
असली पर ना हो
नकली का धंधा भारी
कोई ना करे धंधा जाली
अपने घर भी हो दिवाली !

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