रविवार, जनवरी 29, 2012

दो हिन्दी कविताएं

*आज क्या लिखूं *


आज क्या लिखूं
बार बार सोचा
सोचना मुझे ही था
इस लिए वही सोचा
जो मुझे सोचना था 


जो सोचा
वह लिख नहीं पाया
और जो लिखा
वह सोच नहीं पाया
इस लिए फिर सोचा
क्यों सोचा ?


कुछ लोग
बिना सोचे
लिख रहे थे
लोग सोचते नहीं ।



मैंने सोचा तुम्हारा नाम
तुम ने कहा
क्योँ सोचा
उधर उन्होनें कहा
क्यों नहीं सोचा
हमारा नाम !


एक दिन
नत्थू भी उलझ गया
लिखते हो आप
लिख दो हमारा नाम
बी.पी.एल. में
या फिर लिख दो
कोरे भाग्य में
केवल तीन शब्द ;
रोटी-कपड़ा-मकान !


छोड़ दिया हम ने
उस दिन के बाद
सोच कर लिखना
लिख कर सोचना
तब से
मजे में हैं ।
 
 
*मेरे आंगन उतरेगा सूरज*


आज फिर निकला
शरद का चांद
मेरी छत पर
चांदनी में नहा गया
आज फिर मेरा आंगन !


घर की दीवारेँ
कांपने लगीं
आज फिर दौड़ कर
गया मैं छत पर
ढांपने खुली छत
चांद मुस्कुराया
लगा गिर ही जाएगा
बीच आंगन आज !


कांपती रूह
लरज़ते जिस्म
उतर ही आया
कल के सूरज को
अपने आंगन
उतरने का रास्ता दे !


दूर गगन में
टिमटिमाते तारे
हंसने लगे
उन्मुक्त हंसी
मानों खिलाखिला रहे हों
मासूम बच्चे
मदारी के आगे
नाचते नंगे बंदर को
देख कर बेबस !


सूरज भी आएगा
उसी मारग
जिस मारग आ
चांद भर देता है
रगों तक में ठंडापन
उन्हीं रगों मेँ कल
भर देगा आग
जब उतरेगा कल
सूरज मेरे आंगन !

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