रविवार, जनवरी 29, 2012

दो हिन्दी कविताएं

*प्यासे सवाल*

आकाश अंतरिक्ष में
तना रहा
आगोश में लिए
अंगारो का पितामह
स्वछन्द हठी सूरज !


कभी उतर कर
नहीं आया
तपती धरा के पासंग
हमेशा पैदा किया भ्रम
बड़बोले जगत में ;
वो दूर छू रहा है
आकाश धरा को
चपल जगत ने
खींच भी ली
मनमानी क्षितिज रेखा
सुदूर अंतरिक्ष में
अपने ही सामर्थ्य से !


धरा मौन थी
मौन ही रही
उसकी जाई रेत
गई उड़ कर
अंतरिक्ष मेँ निष्कपट
हो भ्रमित लौट आई
सूरज के तपते मोहपाश से
आबद्ध हो कर
अब पड़ी है
साध कर अखूट मौन
जिस में कैद हैं
अथाह प्यासे सवाल !


*मौसम बदल गया*



आज अचानक
घर की मुंडेर से
आंगन में झांका सूरज ने
अलसाई भोर सिहर गई
ले कर अंगड़ाई
उठ चल पड़ा
नीरस दिन
छत मेँ सहतीर के
कोटर में दुबकी चिड़िया
पंख फड़फड़ा उड़ गई
मुक्त गगन में
कांपती रूह थम गई
मां के हाथों
मीठी गुड़ वाली
चाय थाम कर
तब जाना
मौसम बदल गया ।


मौसम का बदलना
जीवन का बदलना ही तो है
तभी तो
बदल जाती हैं
इच्छाएं-आशाएं
आकांक्षाएं-आवश्यकताएं
रोजमर्रा की ।


सर्द रात मेँ
गर्म आगोश
कहां रहती है
केवल बच्चों की चाहत
प्रोढ़ तन मन
लौटना चाहता है
अपने अतीत मेँ
मिलती नही
गर्म गोद मां की
मां की याद
बदलते मौसम की
दे ही जाती है संकेत !

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