रविवार, अप्रैल 01, 2012

करते हुए याचना

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समूचे देश में
त्यौहार है आज
सजे हैं वंदनवार
बंट रहे हैं उपहार
हो रही हैं उपासनाएं
और अधिक की याचनाएं !

पाषाणी पेट वाले
देवता पा रहे हैं
धूप-दीप-हवियां
तेत्तीस तरकारी
बत्तीस भोजन
छप्पन भोग
अखंड-निःरोग !

आज निकले हैं
लाव-लाव करते
कुलबुलाते पेट
बचा-खुचा-बासी
पेट भर पाने
लौटेंगे शाम तक
न जाने कितनी खा कर
झिड़कियां सनी रोटियां !

आज रात
झौंपड़पट्टी में
मा-बाप निहाल
भर भर पेट
सो जाएंगे लाल
कल फिर ऐसा ही हो
करते हुए याचना
अपने देवता से
दुबक जाएंगे
पॉलिथिन की शैया पर !

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