सोमवार, अप्रैल 16, 2012

एक हिन्दी कविता


सो क्यों जाते हैं चौकीदार
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रेल या बस से
उतर कर
सीधे ही
नहीं आ जाता
मेरा घर
नगर के भीतर
कई नगर
उन नगरों में
कई मोहल्ले
मोहल्लों में
कई-कई गलियां
गलियों में
घरों की कतारें
उन कतारों में
मेरा घर
जिसे ढूंढ़ते-ढ़ूंढ़ते
अक्सर आने वाले
मेहमान तक
भटक जाते हैं
वहां
कैसे पहुंच गईं
मकड़ियां-छिपकलियां
सवाल तो है
उत्तर नहीं है ।

ऐसे ही
बहुत से सवाल हैं
जिन पर कभी
सोचा ही नहीं हम नें
जैसे कि
दिन भर
खटने वाला नत्थू
भूखा क्यों सोता है
राम-राम रटने वाला
कैसे भर लेता है
अपनी तिजोरियां ?

सवाल तो
यह भी है ;
सर्वशक्तिमान
परमेश्वर के दर
किवाड़ों पर
क्यों लगते हैं
बड़े-बड़े ताले ?

सवालों में
एक सवाल यह भी ;
हम क्यों नहीं करते
उन से कोई सवाल
जो छिपाए बैठे हैं
सारे सवालों के जवाब
या कि
सवाल पूछने के नाम पर
जो खाते हैं रोटियां
पांच-पांच साल !

यह भी बता ही दो
जिन्हें चिंता है देश की
उन्हें कैसे आती है नींद
कैसे सो जाते हैं चौकीदार
रात रात भर
जागता क्यों रहता है
मालिक मकान ?

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