'कागद’ हो तो हर कोई बांचे….
रविवार, अप्रैल 01, 2012
आया करो
[<~>] आया करो [<~>]
नीचे उतर कर
आया करो
पर्वतों पर
घूम कर !
तुम बारिश हो
फाल्गुन की
आया करो
झूम कर !
हम हैं सूरज
खुश होंगे
पत्तियों पर शबनम
चूम कर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें