रविवार, अप्रैल 01, 2012

मौसम नहीं बदलता

<> मौसम नहीं बदलता <>
उनको आज भी भाती हैं
मौसम की कविताएं
मीत-मनुहार
प्रीत-श्रृंगार
पायल की झंकार
मौसमी बयार की कविताएं
जब कि उनकी बगल की
झौंपड़पट्टी में
पॉलिथिन बिछा कर लेटी
रामकली तड़प रही है
दो जून रोटी के लिए ।

रामकली का पति
रोटी खा कर नहीं
गश खा कर लेटा है
आंख खुलेगी तब जगेगा
या फिर
जगेगा तब आंख खुलेगी
उठते ही मांगेगा
डोरी गुंथा चांदी वाला
खोटा मंगल सूत्र
जिसे अडाणे रख
आटा लाने की बात करेगा
तब पायल की झंकार नहीं
दो जोड़ी हौंठ बजेंगे
जिन में थिरकेंगी गालियां !

झौंपड़पट्टी में
मौसम नहीं बदलता
मीत बनने की
हौड़ मचती है
जिन से बचने के हठ में
जागती है रामकली
ज्यों जागता है
कोई योगी मठ में !

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