रविवार, अप्रैल 01, 2012

हमारी भूख

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*** हमारी भूख ***

हम दोनों को
भूख थी
मुझे रोटी की
उसे मेरी
सतत प्रतीक्षा थी !

मैं
उसके साथ
चलता रहा निरन्तर
सफर भी तय हुआ
मुकाय आया
मैंने देखा
वहां रोटी नहीं थी
भीड़ थी
जो दौड़ पड़ी
मेरे पीछे
चिल्लाती हुई ;
यही है वह
जो मांगता है
काम के बदले अनाज
इसे पकड़ो - मारो
घुट रहा है आज
कल बोलेगा
शोर न बन जाए कल
इसकी आवाज !

आज भी हम
भाग रहे हैं
एक दूसरे के
आगे या पीछे
हमारी दौड़
बन गई है
एक असीम वृत
जहां आती नहीं
पकड़ में रोटी

वे खुश हैं
चाहे कुछ भी है
मैं
उनके चक्कर में हूं !

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