रविवार, अप्रैल 01, 2012

पांच कविताएं

[ ♥ वैलेंटाइन डे पर  ♥ ]
प्रीत-1

गीत मिलन के
गाए हम ने
सुने तुम ने
मधुर संगीत
कानों में
रस घोल गया
ना मालुम कब
ये प्रीत का पंछी
बोल गया !

प्रीत-2

मन का जंगल
था सूना सूना
पड़ी बूंद चाहत की
प्रीत का बिरवा
फूट गया
कौंपल निकली
दिल चहका
संवर संवर कर
खिला पुहुप तो
तन मन सारा
महक गया
यूं प्रीत में
सारा जंगल
बहक गया !

प्रीत-3

आंख उठा कर
देखा हम ने
फैला सम्मोहन
परस्पर अंतस तक
दिल के तार
झनझनाए भीतर
पगी प्रीत में
आंख पत्थाराई
फिर तो अपने
कदम उठे ना आंख उठी
जब भी उठी
प्रीत की बात उठी !

प्रीत-4

चला मन
चंचल हो कर
लौटा मन
प्रीत बो कर
उगी फसल
नेह की भारी
अब काटें बैठ
हम देहधारी !

प्रीत-5

परकटा
ये प्रीत का पंछी
आ बैठा
मन के परकोटे
मोटे मोटे
आंसू रोता
चाहे नित
मिलन का दाना
दाना पानी
छूट गया
उड़ना भी अब
भूल गया !

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें