बुधवार, मई 30, 2012

भीतर का दर्द

भीतर का दर्द
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भीतर के दर्द की
आती है जब उबाक
छूटता है खाना-पीना
बाहर तो बहुत कम
मगर भीतर ही भीतर
टूटता है बहुत कुछ ।

मीतर पड़ा दर्द
तोड़ता है खुद को
आते ही बाहर
बनता है तमाशा
भीतर से अधिक
बाहर है निराशा !

मेरे दर्द
मेरा अपना है तू
भीतर ही ठहर
मैं ही सुलाऊंगा तुझे
दे कर थपकियां !

1 टिप्पणी:

  1. मेरे दर्द
    मेरा अपना है तू
    भीतर ही ठहर
    मैं ही सुलाऊंगा तुझे
    दे कर थपकियां ...sundar panktiyaan

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