रविवार, अक्तूबर 28, 2012

रोमांच भरी स्मृतियां


अचानक याद आ जाना
गोलगप्पे का स्वाद
गोल बाज़ार में लगी
आलू-टिक्की की
चाट सजी रेहड़ी का
स्मरण हो आना
केवल जीभ की नहीं है
सहज सक्रियता
मन की भी होती है
अदृश्य संलग्नता ।

चाट की रेहड़ी से

गोल बाज़ार तक
मोहल्ले का मार्ग
मार्ग के चरित्र
रेहड़ी पर खड़े भी तो
हुए होंगे अंकित मन में
किसी ने तो
पुकारा होगा जरूर
उन्हें देखने की चाहत
उचक आई होगी
उन सब पर
भारी तो नहीं हो सकता
जीभ का स्वाद ।

कुछ स्मृतियां

देती हैं केवल रोमांच
देती नहीं कभी शब्द
मिलते हैं जो भी शब्द
उनकी सदृश्ता
होती नहीं मुखर
कितना अच्छा लगता है
रोमांच भरी स्मृतियों में!

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