शुक्रवार, मार्च 29, 2013

*कभी पूछो खुद से*

एक चिड़िया फुदकती है
पुष्प की महक चुरा कर
चहचहाती है डाल पर
उसका स्वछंद कलरव
कितना भाता है तुम्हें
घंटो निहार कर
भीतर तक 
रोमांचित हो जाते हो तुम ।

उधर एक घोंसले में
कई दिनों से
उदास बैठी है
एक मौन चिड़िया
वह कभी नहीं आई
तुम्हारे सोच के दायरे में
क्यों नहीं आई
कभी पूछो खुद से !

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