शुक्रवार, मार्च 29, 2013

* वे बहुत भयभीत हैं *



पेड़ हम ने लगाया
छाया तुम ने भोगी
हम आज भी
धूप के साये में हैं
हमारे ऊपर तपती
धूप हमारी हुई तो
तुम गुस्साए
धूप छीनने
घर से निकल आए
धूप में तुम झुलसे तो
हम ने तुम पर हवा की
हवा भी जब
तुम्हें हमारी लगी तो
तुम झल्लाए
कुछ सोच कर
तुम ने पेड़ कटवा दिए
पेड़ कट गए तो
हम बीज बीन लाए
बंद कर लिए
अपनी मुठ्ठियों में
और निकल आए
अपनी ज़मीन के लिए
आज कल वे
हमारी बंद मुठ्ठियों से
बहुत भयभीत हैं ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें