शुक्रवार, जून 21, 2013

*इतिहास का सम्मोहन*


वक्त समेटता
खुद को
हो जाता इतिहास 
हम तलाशते उस मेँ
अपने खासम खास ।

करवट लेतीं आकांक्षाएं
कालपुरुष के पासंग
हम ढूंढ़ते उस में
आदिम सपनों की
हारी जीती जंग !

वक्त आज गुजरता
चाहता संग ले जाना
कालखंड के हस्ताक्षर
कौन चलेगा
कौन रुकेका
बारूदों बैठी
दुनियां दिखती दंग !

कालचक्र घूमता
रचता कालग्रास
आ तू-आ तू
तू आ-तू आ की
देता टेर
निज अभिलाषा ले
देखो निकले दंभी
इतिहास पत्रों के
सम्मोहन में बंधते
बदलें कितने रंग !

वो दूर गगन मेँ
उड़ती चिड़िया
उतरी कहां-किधर
कौन बताएगा
गुजरे वक्त
तुम बताना
कौन जीता
कौन हारा
सभ्यता के पाखंडों में
जीवन वाला जंग !

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