शुक्रवार, जून 21, 2013

आओ लौट चलें

आओ लौट चलें
उस युग में
जहां नहीं था 
आज जैसा कुछ भी
बुरा भला
आदमी था
केवल आदमी 
आदमी के पास
आज जितने
नहीं थे विशेषण
जो लील रहे हैं
आज उसका होना ।

आओ लौटा लाएं
लुप्त होती
आदमी के लिए
उसकी मूल संज्ञा
जो दब गई है
असंख्य विशेषणों के नीचे !

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें