शुक्रवार, जून 21, 2013

**मैं घायल ही ठीक हूं**


कोई आए 
हमारा हाल चाल पूछे
स्वस्थ रहने के लिए
दें शुभकामनाएं
इसके लिए
कितना जरूरी है
हमारा बीमार हो जाना
आज जाना !

आज
ज्यों ज्यों फैली खबर
मेरे घायल होने की
चले आए रिश्तेदार
दूर नजदीक के संबंधी भी
यार अणमुल्ले
नए पुराने
इसी बहाने
हुआ मिलना वर्षोँ बाद !

अब जाना
कितना अच्छा है
भीतर की बजाय
चोट का बाहर लगना
भीतर का दर्द दिखता नहीं
बंटता भी नहीं
होती नहीं दवा दारू
मरहम पट्टी
भीतर के घावों पर
झेलना पड़ता है ताउम्र
भीतर के जख्मों का दर्द !

इस लिए
बहुत रुचता है मुझे
बाहर का दर्द
जिसकी बदोलत
आ जाते हैं कुछ फल-फ्रूट
मुस्कुराते-गंधाते गुलदस्ते
जिन में दिखती है तस्वीरें
आने जानें वालों की
कुछ गुलदस्ते
आइना होते हैं
तभी तो कुछ के भीतर
कुछ का कुछ-कुछ
दिख ही जाता है दर्द
मेरे सुधरते स्वास्थ्य का !

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