शनिवार, मार्च 29, 2014

मेरे मन में डर

मन में उपजा
आता है बाहर
पा कर अवसर 
हो जाते हैं घोषित
वे शब्द अपराधी
जो लाते हैं ढो कर
मनगत को बाहर ।

मन से मुक्त हो कर
मनगत देने लगती है
वांछनाओं को आकार
इन आकारों के आगे
फिर मर जाते हैं
न जाने कितने मन ।

कुछ कहे
उसका मन नहीं था
मैंने रख लिया
बिना सवाल किए
आज उसका मन
मेरा तो मन
मर ही गया था
मौन रह कर
आती कैसे
मनगत बाहर ।

उसका मन
होने को अभिव्यक्त
बटोर रहा है
उपयुक्त शब्द
मेरे मन में डर है ;
कहीं वे गालियां न हों !

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