शुक्रवार, अप्रैल 25, 2014

सत्य समय सापेक्ष है

सत्य का स्थान
लेता है असत्य
सत्य का अंत ही
होता है असत्य 
और फिर
असत्य का अंत ही
बनता है नया सत्य ।

सत्य को कर परास्त
असत्य ही
हो जाता है स्थापित
एक नए सत्य के रूप में
आज जो असत्य है
वही है कल का सत्य
और जो आज सत्य है
वही होगा कल का असत्य ।

स्थापित असत्य को
धकेल-पछाड़ कर ही
नया सत्य
होता है स्थापित
जो चलता है
कुछ समय के लिए
फिर हो जाता है असत्य
किसी नए सत्य के लिए ।

किस के अधीन है सत्य
धनबल-भुजबल
वाचालों की चाल
या फिर
सत्ता के खूंटे बंधा
सामर्थ्य सापेक्ष भी
कौन जाने
सत्य मगर है
समय सापेक्ष ही !

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