शुक्रवार, अप्रैल 25, 2014

फ़िर दे ताली-मना दिवाली

अंतिम पंक्ति में खडे़
आम आदमी के पास
हो अपना घर
अपनी छत
अपना आंगन
उस आंगन में सज़े रंगोली
चहूं ओर पसरी हो खुशहाली
फ़िर दे ताली
मना दिवाली !

घर-घर पसरे
खुशियां ही खुशियां
हर आंगन में जले
शिक्षा का दीपक
छत हो सुरक्षित
जिस के नीचे
दिल नहीं
हर दिन जलता हो चूल्हा
पकती हो दो वक्त
मेहनत की रोटी
न कोई छीने रोटे
न कोई झपटे रोटी
न कोई मांगे रोटी
न कोई सेके रोटी
फ़िर दे ताली
मना दिवाली !

घर-घर हों
खुशियों के धूम-धडा़के
जिसकी धमक
पहुंचें गांव-गली
नगर-नगर और डगर-डगर !
गम का तम मिट जाए
हों रोशन खुशियों के दीपक
दुख दारिद्र्य का धूम्र
निकले घर-घर से
अनंत क्षितिज में जाए समा!
फ़िर फ़ैले चहूं ओर
महक लुटाती पौन छबीली
हवा निराली खुशियों की
फ़िर दे ताली
मना दिवाली !

अघट घटे न कभी
घट-घट सुघट घट सरसाए
सड़क न खाए आदम जाए !
आदम न हो आदम का बैरी
आतंकी छाया की माया का
टूटे तिलसम बीच चौराहे !
घर से निकला
घर का जाया
घर ही लौटे
मिट जाए भय के साये !
सम्बन्धों की चादर का
तान-बाना फ़िर जुड़ जाए
घरजाई बहिनों सरीखी हो
परजाई सब बहिनों की अस्मत
फ़िर दे ताली
मना दिवाली !

जनमत ना हो लाचार कभी
सरकार करे सपने साकार सभी
घोटालों  पर न्यायिक घोटे से
सरकार करे वार सभी
न मिलावट हो
न मुनाफ़ाखोरी
न तेजी-मंदी तेजडि़या
न सट्टा हो साकार कभी
सेंसैक्स न उछले-फ़िसले
थम जाए मुद्रा प्रसार कभी !
न पुल टूटे न नदियां छलकें
मर जाएं नकली ठेकेदार सभी !
कांडों का भांडा फ़ोडा़ जाए
कांडवती न हो सरकार कभी !
फ़िर दे ताली
मना दिवाली !

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