शुक्रवार, अप्रैल 25, 2014

** धिक गई ज़िन्दगी **

थोडी़ सी धिकाई और धिक गई ज़िन्दगी ।
दो नर्म आसूं गिरे और टिक गई ज़िन्दगी ॥

ये फ़लक था बडा़ हम लुंज-पुंज लाचार ।
टीचर जी के चाक सी घिस गई ज़िन्दगी ॥

सपनों की बारिश और लम्बा रहा सफ़र ।
इंद्रधनुष सी उभरी और मिट गई ज़िन्दगी ॥

ठंठारों की बस्ती में रहा बंजारों का महल ।
दीवार-ओ-नींव तलक चटख गई ज़िन्दगी ॥

रेत की नदी   और नाव रही   कागज़ की ।
सफ़र के अंजाम ही से सहम गई ज़िन्दगी ॥

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें